17-10-03   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

“पूरा वर्ष - सन्तुष्टमणि बन सदा सन्तुष्ट रहना और सबको सन्तुष्ट करना”

आज दिलाराम बापदादा अपने चारों ओर के, सामने वालों को भी और दूर सो समीप वालों को भी हर एक राज दुलारे, अति प्यारे बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। हर एक बच्चा राजा है इसलिए राज-दुलारे हैं। यह परमात्म प्यार, दुलार विश्व में बहुत थोड़ी सी आत्माओं को प्राप्त होता है। लेकिन आप सभी परमात्म प्यार, परमात्म दुलार के अधिकारी हैं। दुनिया की आत्मायें पुकार रही हैं आओ, आओ लेकिन आप सभी परमात्म प्यार अनुभव कर रहे हो। परमात्म पालना में पल रहे हो। ऐसा अपना भाग्य अनुभव करते हो? बापदादा सभी बच्चों को डबल राज्य अधिकारी देख रहे हैं। अभी के भी स्व राज्य अधिकारी राजे हो और भविष्य में तो राज्य आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। तो डबल राजे हो। सभी राजा हो ना, प्रजा तो नहीं! राजयोगी हो या कोई-कोई प्रजायोगी भी है? है कोई प्रजा योगी, पीछे वाले राजयोगी हो? प्रजायोगी कोई नहीं है ना! पक्का? सोच के हाँ करना! राज अधिकारी अर्थात् सर्व सूक्ष्म और स्थूल कर्मेन्द्रियों के अधिकारी क्योंकि स्वराज्य है ना? तो कभी-कभी राजे बनते हो या सदा राजे रहते हो? मूल है अपने मन-बुद्धि-संस्कार के भी अधिकारी हो? सदा अधिकारी हो या कभी-कभी? स्व राज्य तो सदा स्वराज्य होता है या एक दिन होता है दूसरे दिन नहीं होता है। राज्य तो सदा होता है ना? तो सदा स्वराज्य अधिकारी अर्थात् सदा मन-बुद्धि-संस्कार के ऊपर अधिकार। सदा है? सदा में हाँ नहीं करते? कभी मन आपको चलाता है या आप मन को चलाते? कभी मन मालिक बनता है? बनता है ना! तो सदा स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी।

सदा चेक करो - जितना समय और जितनी पावर से अपने कर्मेन्द्रियों, मन-बुद्धि-संस्कार के ऊपर अभी अधिकारी बनते हो उतना ही भविष्य में राज्य अधिकार मिलता है। अगर अभी परमात्म पालना, परमात्म पढ़ाई, परमात्म श्रीमत के आधार पर यह एक संग-मयुग का जन्म सदा अधिकारी नहीं तो 21 जन्म कैसे राज्य अधिकारी बनेंगे? हिसाब है ना! इस समय का स्वराज्य, स्व का राजा बनने से ही 21 जन्म की गैरन्टी है। मैं कौन और क्या बनूंगा, अपना भविष्य वर्तमान के अधिकार द्वारा स्वयं ही जान सकते हो। सोचो, आप विशेष आत्माओं की अनादि आदि पर्सनैलिटी और रॉयल्टी कितनी ऊंची है! अनादि रूप में भी देखो जब आप आत्मायें परमधाम में रहती तो कितनी चमकती हुई आत्मायें दिखाई देती हो। उस चमक की रॉयल्टी, पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है। दिखाई देती है? और बाप के साथ-साथ आत्मा रूप में भी रहते हो, समीप रहते हो। जैसे आकाश में कोई-कोई सितारे बहुत ज्यादा चम-कने वाले होते हैं ना! ऐसे आप आत्मायें भी विशेष बाप के साथ और विशेष चमकते हुए सितारे होते हो। परमधाम में भी आप बाप के समीप हो और फिर आदि सतयुग में भी आप देव आत्माओं की पर्सनैलिटी, रॉयल्टी कितनी ऊंची है। सारे कल्प में चक्कर लगाओ, धर्म आत्मा हो गये, महात्मा हो गये, धर्म पितायें हो गये, नेतायें हो गये, अभिनेतायें हो गये, ऐसी पर्सनैलिटी कोई की है, जो आप देव आत्माओं की सतयुग में है? अपना देव स्वरूप सामने आ रहा है ना? आ रहा है या पता नहीं हम बनेंगे या नहीं? पक्का है ना! अपना देव रूप सामने लाओ और देखो, पर्सनैलिटी सामने आ गई? कितनी रॉयल्टी है, प्रकृति भी पर्सनैलिटी वाली हो जाती है। पंछी, वृक्ष, फल, फूल सब पर्सनैलिटी वाले, रॉयल। अच्छा फिर आओ नीचे, तो अपना पूज्य रूप देखा है? आपकी पूजा होती है! डबल फारेनर्स पूज्य बनेंगे कि इन्डिया वाले बनेंगे? आप लोग देवियां, देवतायें बने हो? सूंढ वाला नहीं, पूंछ वाला नहीं। देवियां भी वह काली रूप नहीं, लेकिन देवताओं के मन्दिर में देखो, आपके पूज्य स्वरूप की कितनी रॉयल्टी है, कितनी पर्सनैलिटी है? मूर्ति होगी, 4 फुट, 5 फुट की और मन्दिर कितना बड़ा बनाते हैं। यह रॉयल्टी और पर्सनैलिटी है। आजकल के चाहे प्राइम मिनि-स्टर हो, चाहे राजा हो लेकिन धूप में बिचारे का बुत बनाके रख देंगे, क्या भी होता रहे। और आपके पूज्य स्वरूप की पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है। है ना बढ़िया! कुमारियां बैठी हैं ना! रॉयल्टी है ना आपकी? फिर अन्त में संगमयुग में भी आप सबकी रॉयल्टी कितनी ऊंची है। ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है! डायरेक्ट भगवान ने आपके ब्राह्मण जीवन में पर्सनैलिटी और रॉयल्टी भरी है। ब्राह्मण जीवन का चित्रकार कौन? स्वयं बाप। ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी रॉयल्टी कौन सी है? प्युरिटी। प्युरिटी ही रॉयल्टी है। है ना! ब्राह्मण आत्मायें सभी जो भी बैठे हो तो प्युरिटी की रॉयल्टी है ना! हाँ, कांध हिलाओ। पीछे वाले हाथ उठा रहे हैं। आप पीछे नहीं हो, सामने हो। देखो नजर पीछे जाती है, आगे तो ऐसे देखना पड़ता है पीछे आटोमेटिक जाती है।

तो चेक करो - प्युरिटी की पर्सनैलिटी सदा रहती है? मन्सा-वाचा-कर्मणा, वृत्ति, दृष्टि और कृति सबमें प्युरिटी है? मन्सा प्युरिटी अर्थात् सदा और सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना - सर्व प्रति। वह आत्मा कैसी भी हो लेकिन प्युरिटी की रॉयल्टी की मन्सा है - सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, कल्याण की भावना, रहम की भावना, दातापन की भावना। और दृष्टि में या तो सदा हर एक के प्रति आत्मिक स्वरूप देखने में आये वा फरिश्ता रूप दिखाई दे। चाहे वह फरिश्ता नहीं बना है, लेकिन मेरी दृष्टि में फरिश्ता रूप और आत्मिक रूप ही हो और कृति अर्थात् सम्पर्क सम्बन्ध में, कर्म में आना, उसमें सदा ही सर्व प्रति स्नेह देना, सुख देना। चाहे दूसरा स्नेह दे, नहीं दे लेकिन मेरा कर्तव्य है स्नेह देकर स्नेही बनाना। सुख देना। स्लोगन है ना - ना दु:ख दो, ना दु:ख लो। देना भी नहीं है, लेना भी नहीं है। देने वाले आपको कभी दु:ख भी दे दें लेकिन आप उसको सुख की स्मृति से देखो। गिरे हुए को गिराया नहीं जाता है, गिरे हुए को सदा ऊंचा उठाया जाता है। वह परवश होके दु:ख दे रहा है। गिर गया ना! तो उसको गिराना नहीं है और भी उस बिचारे को एक लात लगा लो, ऐसे नहीं। उसको स्नेह से ऊंचा उठाओ। उसमें भी फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम। पहले तो चैरिटी बिगन्स एट होम है ना, अपने सर्व साथी, सेवा के साथी, ब्राह्मण परिवार के साथी हर एक को ऊंचा उठाओ। वह अपनी बुराई दिखावे भी लेकिन आप उनकी विशेषता देखो। नम्बरवार तो हैं ना! देखो, माला आपका यादगार है। तो सब एक नम्बर तो नहीं है ना! 108 नम्बर हैं ना! तो नम्बरवार हैं और रहेंगे लेकिन मेरा फर्ज क्या है? यह नहीं सोचना अच्छा मैं 8 में तो हूँ ही नहीं, 108 में शायद आ जाऊंगी, आ जाऊंगा। तो 108 में लास्ट भी हो सकता है तो मेरे भी तो कुछ संस्कार होंगे ना, लेकिन नहीं। दूसरे को सुख देते-देते, स्नेह देते-देते आपके संस्कार भी स्नेही, सुखी बन ही जाने हैं। यह सेवा है और यह सेवा फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम।

बापदादा को आज एक बात पर हंसी आ रही थी, बतायें। देखना आपको भी हंसी आयेगी। बापदादा तो बच्चों का खेल देखते रहते हैं ना! बापदादा एक सेकण्ड में कभी किस सेन्टर का टी.वी. खोल देता है, कभी किस सेन्टर का, कभी फॉरेन का, कभी इन्डिया का स्विच ऑन कर देता है, पता पड़ जाता है, क्या कर रहे हैं क्योंकि बाप को बच्चों से प्यार है ना। बच्चे भी कहते हैं समान बनना ही है। पक्का है ना, समान बनना ही है! कुमारियां समान बनना है या ड्रामा में कुछ भी बन गये ठीक है? नहीं। समान बनना है, सभी कुमारियों को बनना ही है। मरना पड़े, क्या भी करना पड़े! सोच के हाथ उठाओ। हाँ जो समझते हैं, मरना पड़े, झुकना पड़े, सहन करना पड़े, सुनना पड़े, वह हाथ उठाओ। कुमारियां सोच के हाथ उठाना। इन्हों का फोटो निकालो। कुमारियां बहुत हैं। मरना पड़ेगा? झुकना पड़ेगा? पाण्डव उठाओ। सुना, समान बनना है। समान नहीं बनेंगे तो मजा नहीं आयेगा। परमधाम में भी समीप नहीं रहेंगे। पूज्य में भी फर्क पड़ जायेगा, सतयुग के राज्य भाग्य में भी फर्क पड़ जायेगा।

ब्रह्मा बाप से आपका प्यार है ना, डबल विदेशियों का सबसे ज्यादा प्यार है। जिसका ब्रह्मा बाबा से जिगरी, दिल का प्यार है वह हाथ उठाओ। अच्छा, पक्का प्यार है ना? अभी क्वेश्चन पूछेंगे, प्यार जिससे होता है, तो प्यार की निशानी है जो उसको अच्छा लगता, वह प्यार करने वाले को भी अच्छा लगता, दोनों के संस्कार, संकल्प, स्वभाव टैली खाते हैं तभी वह प्यारा लगता है। तो ब्रह्मा बाप से प्यार है तो 21 ही जन्म, पहले जन्म से लेकर, दूसरे तीसरे में आये तो अच्छा नहीं है लेकिन फर्स्ट जन्म से लेके लास्ट जन्म तक साथ रहेंगे, भिन्न-भिन्न रूप में साथ रहेंगे। तो साथ कौन रह सकता है? जो समान होगा। वह नम्बरवन आत्मा है। तो साथ कैसे रहेंगे? नम्बरवन बनेंगे तब तो साथ रहेंगे, सबमें नम्बरवन, मन्सा में, वाणी में, कर्मणा में, वृत्ति में, दृष्टि में, कृति में, सबमें। तो नम्बरवन हैं या नम्बरवार हैं? तो अगर प्यार है तो प्यार के लिए कुछ भी कुर्बानी करना मुश्किल नहीं होता। लास्ट जन्म कलियुग के अन्त में भी बॉडी कान्सेस प्यार वाले जान भी कुर्बान कर देते हैं। तो आपने अगर ब्रह्मा बाबा के प्यार में अपने संस्कार परिवर्तन किया तो क्या बड़ी बात है! बड़ी बात है क्या? नहीं है। तो आज से सबके संस्कार चेंज हो गये! पक्का? रिपोर्ट आयेगी, आपके साथी लिखेंगे, पक्का? सुन रही हैं दादियां, कहते हैं संस्कार बदल गये। या टाइम लगेगा? क्या? मोहिनी (न्युयार्क) सुनावे, बदलेंगे ना! यह सभी बदलेंगे ना? अमेरिका वाले तो बदल जायेंगे। हंसी की बात तो रह गई।

हंसी की यह बात है - तो सभी कहते हैं कि पुरूषार्थ तो बहुत करते हैं, और बापदादा को देख करके रहम भी आता है पुरूषार्थ बहुत करते हैं, कभी-कभी मेहनत बहुत करते हैं और कहते क्या हैं - क्या करें, मेरे संस्कार ऐसे हैं! संस्कार के ऊपर कहकर अपने को हल्का कर देते हैं लेकिन बाप ने आज देखा कि यह जो आप कहते हो कि मेरा संस्कार है, तो क्या आपका यह संस्कार है? आप आत्मा हो, आत्मा हो ना! बॉडी तो नहीं हो ना! तो आत्मा के संस्कार क्या हैं? और ओरीज्नल आपके संस्कार कौन से हैं? जिसको आज आप मेरा कहते हो वह मेरा है या रावण का है? किसका है? आपका है? नहीं है? तो मेरा क्यों कहते हो! कहते तो ऐसे ही हो ना कि मेरा संस्कार ऐसा है? तो आज से यह नहीं कहना, मेरा संस्कार। नहीं। कभी यहाँ वहाँ से उड़के किचड़ा आ जाता है ना! तो यह रावण की चीज़ आ गई तो उसको मेरा कैसे कहते हो! है मेरा? नहीं है ना? तो अभी कभी नहीं कहना, जब मेरा शब्द बोलो तो याद करो मैं कौन और मेरा संस्कार क्या? बॉडी कान्सेस में मेरा संस्कार है, आत्म-अभिमानी में यह संस्कार नहीं है। तो अभी यह भाषा भी परिवर्तन करना। मेरा संस्कार कहके अलबेले हो जाते हो। कहेंगे भाव नहीं है, संस्कार है। अच्छा दूसरा शब्द क्या कहते हैं? मेरा स्वभाव। अभी स्वभाव शब्द कितना अच्छा है। स्व तो सदा अच्छा होता है। मेरा स्वभाव, स्व का भाव अच्छा होता है, खराब नहीं होता है। तो यह जो शब्द यूज करते हो ना, मेरा स्वभाव है, मेरा संस्कार है, अभी इस भाषा को चेंज करो, जब भी मेरा शब्द आवे, तो याद करो मेरा संस्कार ओरीज्नल क्या है? यह कौन बोलता है? आत्मा बोलती है यह मेरा संस्कार है? तो जब यह सोचेंगे ना तो अपने ऊपर ही हंसी आयेगी, आयेगी ना हंसी? हंसी आयेगी तो जो खिटखिट करते हो वह खत्म हो जायेगी। इसको कहते हैं भाषा का परिवर्तन करना अर्थात् हर आत्मा के प्रति स्वमान और सम्मान में रहना। स्वयं भी सदा स्वमान में रहो, औरों को भी स्वमान से देखो। स्वमान से देखेंगे ना तो फिर जो कोई भी बातें होती हैं, जो आपको भी पसन्द नहीं हैं, कभी भी कोई खिटखिट होती है तो पसन्द आता है? नहीं आता है ना? तो देखो ही एक दो को स्वमान से। यह विशेष आत्मा है, यह बाप के पालना वाली ब्राह्मण आत्मा है। यह कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा है। सिर्फ एक बात करो - अपने नयनों में बिन्दी को समा दो, बस। एक बिन्दी से तो देखते हो, दूसरी बिन्दी भी समा दो तो कुछ भी नहीं होगा, मेहनत करनी नहीं पड़ेगी। जैसे आत्मा, आत्मा को देख रही है। आत्मा, आत्मा से बोल रही है। आत्मिक वृत्ति, आत्मिक दृष्टि बनाओ। समझा - क्या करना है? अभी मेरा संस्कार कभी नहीं कहना, स्वभाव कहो तो स्व के भाव में रहना। ठीक है ना।

बापदादा इस सीजन के पहले टर्न में, पहला टर्न तो आप सबका है ना, तो जब पहला टर्न लिया है, तो पहला नम्बर रिटर्न भी देना है। देना पड़ेगा ना! और डबल विदेशियों की यह विशेषता तो जन्म से है - जो भी करेंगे वह पक्का ही करेंगे। अधूरा नहीं करते हैं, पक्का ही करते हैं। हाँ या ना। हाँ ना के बीच में लटकते नहीं हैं। तो रिटर्न करना है ना! बस इस सीजन में, पूरी सीजन में, आज फर्स्ट चांस है, बापदादा यही चाहते हैं कि यह पूरा वर्ष चाहे सीजन 6 मास चलती है लेकिन पूरा ही वर्ष सभी को जब भी मिलो, जिससे भी मिलो, चाहे आपस में, चाहे और आत्माओं से लेकिन जब भी मिलो, जिससे भी मिलो उसको सन्तुष्टता का सहयोग दो। स्वयं भी सन्तुष्ट रहो और दूसरे को भी सन्तुष्ट करो। इस सीजन का स्वमान है - सन्तुष्टमणि। सदा सन्तुष्ट-मणि। भाई भी मणि हैं, मणा नहीं होता है, मणि होता है। एक एक आत्मा हर समय सन्तुष्टमणि है। और स्वयं सन्तुष्ट होंगे तो दूसरे को भी सन्तुष्ट करेंगे। सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना। ठीक है, पसन्द है? कुमारियों को पसन्द है? जिसको पसन्द है और करेगा, सिर्फ सुनने में पसन्द नहीं, करने में पसन्द है - वह सभी हाथ उठाओ। हाथ देख करके तो बापदादा की दिल खुश हो गई। बहुत अच्छा, मुबारक हो, मुबारक हो। कुछ भी हो जाए, अपने स्वमान की सीट पर एकाग्र रहो, भटको नहीं, कभी किस सीट पर, कभी किस सीट पर, नहीं। अपने स्वमान की सीट पर एकाग्र रहो। और एकाग्र सीट पर सेट होके अगर कोई भी बात आती है ना तो एक कार्टून शो के मुआिफक देखो, कार्टून देखना अच्छा लगता है ना, तो यह समस्या नहीं है, कार्टून शो चल रहा है। कोई शेर आता है, कोई बकरी आती है, कोई बिच्छू आता है, कोई छिपकली आती है गंदी - कार्टून शो है। अपनी सीट से अपसेट नहीं हो। मजा आयेगा। अच्छा शेर भी आया, कुत्ता भी आया, बिल्ली भी आई, आने दो - देखते रहो।

बापदादा ने सुनाया था - तो आप सब अपने स्वमान के शान की सीट पर रहो तो परेशान नहीं होंगे। स्वमान की शान में नहीं रहते हो तो परेशान होते हो। छोटा सा पेपर टाइगर होता है लेकिन परेशान हो जाते हैं। तो इस वर्ष एकाग्र होके स्वमान की सीट पर रहना, ऐसे नहीं कहना मैं जानती तो हूँ, सुना भी है, जाना भी है, लेकिन .... नहीं। सुनना और जानना तो ठीक है लेकिन अपने को मान कर एकाग्र होके सीट पर बैठना, मान करके नहीं चलते हो, सिर्फ जानते और सुनते हो। सीट पर स्वरूप में स्थित होके बैठो। समझा।

बापदादा को समाचार मिला था - कि यह चार ग्रुप हैं ना। एक कुमारियों का, एक कम्प्युटर ग्रुप, एक मैनेजमेंट ग्रुप, एक हेल्थ का.... चार ही ग्रुप का समाचार मिला, अच्छा है लेकिन कम्प्युटर चलाते भी कम्प्युटर वाली कुर्सा पर भले बैठना लेकिन अपने स्वमान की सीट को छोड़ना नहीं। डबल सीट पर बैठना, सिर्फ कम्प्युटर की सीट पर नहीं। तो डबल सेवा हो जायेगी। बहुत सेवा कर सकते हो। हेल्थ वाले भी बहुत सेवा कर सकते हैं। दिखाया था, किताब बनाया है ना, सब समाचार सुना है। किताब किसने बनाया है? अच्छा बनाया है। लेकिन हेल्थ के साथ स्वमान पहले। स्वमान की सीट को नहीं छोड़ना, कभी किस सीट पर, कभी किस सीट पर नहीं। श्रेष्ठ स्वरूप के स्मृति की सीट पर। अपनी सीट नहीं छोड़ना। कुमारियों ने भी जो प्रॉमिस किया है, बहुत अच्छा किया है। बापदादा अभी प्रॉमिस की मुबारक दे रहे हैं लेकिन लेनी कौन सी मुबारक है? प्रैक्टिकल की। तो आज सिर्फ प्रॉमिस की मुबारक दे रहे हैं फिर प्रैक्टिकल रिजल्ट की मुबारक देंगे। वह मुबारक लेनी है ना। अच्छे-अच्छे बैठे हैं, दिखाई दे रहा है। अच्छी स्वमान वाली कुमारियां हैं। (10 साल वाले भी बैठे हैं) यह भी बहुत कमाल है, 10 साल अमर रहे हैं। तो अमरनाथ बाबा की तरफ से अमर भव का वरदान है। हाथ उठाओ 10 साल वाले। आंटी अंकल को तो बहुत साल हो गये।

तो 10 साल वालों को बापदादा 9 रत्नों की माला पहना रहे हैं। 9 रत्न निर्विघ्न बनाने के होते हैं। 8 शक्तियां और बाप, सदा स्मृति में रहे। अच्छा है। फॉरेन में रहते अभी 10 साल पास किया तो अमर हो गये ना! कि समझते हो पता नहीं आगे क्या हो? अच्छा 10 साल वालों ने जो हाथ उठाया, उन्हों को अपने फ्युचर का भी निश्चय है कि समझते हैं पता नहीं चल सकेंगे या नहीं चल सकेंगे? जो समझते हैं अन्त तक साथ रहना ही है, अमर रहना है, कुछ भी हो जाए, हिमालय जितना पहाड़ भी गिर जाए, गिरेगा, पक्के हैं? बहुत अच्छा। अच्छा इन्डिया वालों ने उठाया। इन्डिया वाले समझते हैं हम हैं ही पक्के? यह 10 साल वाले नहीं लेकिन सभी को अपना निश्चय चाहिए कुछ भी हो जाए, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे, साथ राज्य में आयेंगे। पक्का है ना! साथ रहेंगे ना! बाप को अकेला छोड़के नहीं चले जाना। अकेला थोड़ेही अच्छा लगेगा। आपको भी अच्छा नहीं लगेगा, बाप को भी अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए छोड़ना नहीं। कोई भी बात आवे आप दिल से बोलो बाबा, मेरा बाबा, बाबा हाजिर है। आपकी समस्या को हल कर देंगे। दिल से बोलना, बाबा यह बात है, बाबा यह करो, बाबा यह... बाप बंधा हुआ है। लेकिन दिल से, ऐसे नहीं मतलब के टाइम याद करो और फिर भूल जाओ।

तो सभी डबल फारेनर्स अपने भाग्य को देख के खुश हो रहे हैं। पहला चांस मिला है और स्पेशल चांस मिला है। तो पूरा सीजन जो बाप ने कहा वह निभायेंगे ना। सोचने वाले नहीं बनना, निभाने वाले। जब मेरा कह दिया, मेरा बाबा और बाबा ने भी कहा मेरा बच्चा, पक्का सौदा हो गया ना! दादियां ठीक है? फारेनर्स को देखके खुशी हो रही है ना! बहुत खुशी। दादी को तो बहुत उमंग आता है। अगर कुछ हो सके ना, तो दादी सबको यहाँ ही बिठा देवे। यह सब हाजिर हैं कि सोचेंगे, लण्डन के डायमण्ड हॉल का क्या होगा? नहीं, यह सब एवररेडी हैं। अगर बापदादा आर्डर करे आ जाओ, कुछ भी सोचो नहीं, सेवा को, सेन्टर को, साथियों को कुछ नहीं सोचो, आ जाओ, तो आ जायेंगे? (हाँ जी) अच्छा है। वह भी दिन आयेगा, आर्डर आयेगा आ जाओ क्योंकि बाप का प्यार है ना, तो अलग-अलग नहीं करके, साथ चलेंगे। जो पक्के होंगे वह रहेंगे। तो सभी निर्विघ्न, कि अभी कोने में कोई विघ्न रह गया। नहीं ना! कोई विघ्न अभी अन्दर है? थोड़ा थोड़ा तो है? नहीं है? सभी निर्विघ्न हैं? आज सब यहाँ छोड़ के जाओ, ओम् शान्ति भवन है ना, तो ओम् शान्ति हो जायेगा। क्या करना है? कांटे को फौरन निकाला जाता है। अगर कांटा जल्दी नहीं निकालो तो टांग कटवानी पड़ती है, इसलिए विघ्न को समाप्त करो। अपने ओरीज्नल संस्कार को इमर्ज करो। अच्छा - सब ग्रुप ठीक है।

अभी ग्रुप-ग्रुप हाथ उठाओ।

कुमारियों का ग्रुप हाथ उठाओ। कम्प्युटर ग्रुप पीछे बैठे हैं, हेल्थ वाले, एस.एम.एल. वाले, अच्छा है, चारों ही ग्रुप का समाचार अच्छा है। अच्छा। सामने पत्र भी रखे हैं।

चारों ओर के पत्र और कार्ड भी आये हैं, दिल के पत्र भी आये हैं, कागज के पत्र भी आये हैं, दोनों ही बापदादा के पास पहुंचते हैं। बापदादा को अपने दिल का प्यार भी भेजते और साथ-साथ कोई-कोई सेवा का समाचार भी अपना अच्छा भेजते हैं। कोई-कोई थोड़ा सा याद के साथ फरियाद भी करते हैं, बाबा यह कर लेना, यह कर लेना। लेकिन अच्छा है - अगर लिखते हैं तो लिखने वाले को सहयोग भी मिलता है। सच्ची दिल और साफ दिल होती है ना, तो साफ दिल मुराद हांसिल हो जाती है। अभी भी चारों ओर सुनते भी हैं, कोई-कोई देखते भी हैं लेकिन सुनते तो काफी हैं। आप इस हॉल में बैठे हो वह अपने देश के हाल में बैठे हैं। यह भी साइंस के साधन आप ब्राह्मणों के लिए ही निकले हैं। आप स्थापना के कार्य में लगाते और कोई फिर विनाश के कार्य में लगाते। लेकिन बापदादा साइंस वाले बच्चों को भी मुबारक देते हैं कि इन्वेन्शन अच्छी निकाली है जो दूर बैठे भी बच्चे सुन रहे हैं, देख रहे हैं। अच्छा।

चारों ओर के राज दुलारे बच्चों को, सर्व स्नेही, सहयोगी, समान बनने वाले बच्चों को, सदा अपने श्रेष्ठ स्व भाव और संस्कार को स्वरूप में इमर्ज करने वाले बच्चों को, सदा सुख देने, सर्व को स्नेह देने वाले बच्चों को, सदा सन्तुष्टमणि बन सन्तुष्टता की किरणें फैलाने वाले बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादी जी से:- बहुत अच्छी तन्दरूस्त हो गई। कोई ऐसी बात नहीं, बाकी भी ठीक हो जायेगा। (बाबा का वरदान है) खुद भी वर-दानी है ना, इसलिए वरदान जल्दी लग जाता है। सभी का आपसे बहुत प्यार है। सभी का प्यार है क्योंकि बाप ने आपको निमित्त बनाया है। बाप स्वयं तो अव्यक्त हुए, लेकिन साकार रूप में आपको निमित्त बनाया।

गंगें दादी से:- महारथियों की महफिल अच्छी लगती है। अभी सभी महारथी इकट्ठे हुए ना। बापदादा को भी बहुत अच्छा लगा।

रूकमणी दादी से:- वर्तमान भविष्य अच्छा बना रही हो।

विदेश की बड़ी बहिनों से:- सभी अच्छी सर्विस में लगे हुए हैं। बापदादा को भी खुशी होती है कि वृद्धि कर रहे हैं और विधि पूर्वक चल रहे हैं। विधि भी है, वृद्धि भी है। जहाँ तहाँ प्रोग्राम तो बहुत अच्छे हो ही रहे हैं। आपस में मिलकर विश्व में आवाज फैलाने का प्लैन बनाते ही रहते हैं।

(कम्प्युटर से सेवा का प्लैन बना रहे हैं) कोने कोने में कम्प्युटर तो है ही, समय भी कम और चारों ओर फैल जाता। कुमारियां भी अच्छी-अच्छी हैं। अच्छे प्लैन बनाये हैं, बापदादा खुश हैं। चारों तरफ के बनाये हैं, हेल्थ भी आ गई, कम्प्युटर भी आ गये, कोर्स भी आ गये।

विदेश के मुख्य भाईयों से:- बहुत अच्छा, पाण्डव सेना भी कम नहीं हैं। शक्तियां, शक्तियां हैं लेकिन पाण्डव सुभान अल्लाह। पाण्डवों के साथ तो पाण्डवपति है ही। देखो एक-एक की अपनी-अपनी विशेषता है, बापदादा तो एक-एक की विशेषता को देख रहे हैं और हर एक अपनी विशेषता का पार्ट अच्छा बजा रहे हैं। ऐसे है ना। अंकल भी अपना पार्ट अच्छा बजा रहे हैं, यह रोबिन भी बजा रहे हैं, गोबिन्द, निजार भी बजा रहे हैं। अच्छा पार्ट बजाया ना। अच्छे-अच्छे पाण्डव भी निकले हैं तो शक्तियां भी निकली हैं। बापदादा को यही खुशी है कि डबल फॉरेनर्स का ग्रुप सेवा के लिए बहुत अच्छा तैयार हुआ है। सबमें सेवा का उमंग है। है ना उमंग? अंकल फाउण्डेशन है। अच्छे हैं। सदा अमर भव। याद और सेवा में अमर भव। अच्छा। आज से क्वेश्चन पूछना खत्म। मायाजीत हैं ये क्वेश्चन पूछेंगे क्या? मायाजीत हो गये ना! अभी कोई किससे यह नहीं पूछना कि मायाजीत हैं? हैं नहीं लेकिन मायाजीत के नशे में बहुत उड़ रहे हैं। उड़ती कला वाले हैं, किससे भी पूछो तो कहो दिलखुश फरिश्ता है। माया का नाम ही नहीं लो। नाम सहित खत्म करो क्योंकि कुछ समय मायाजीत बनके रहने का अभ्यास जरूर करना पड़े। जो बहुतकाल मायाजीत रहते हैं उन्हें बहुतकाल राज्य भाग्य मिलता है। इसलिए सदा मायाजीत। हैं ही मायाजीत। बापदादा की नजर है, संगठन को नजर से निहाल तो होना ही है। अच्छा।

ओम् शान्ति।